Narendra Kohli
नरेन्द्र कोहली
नरेन्द्र
कोहली अपने समकालीन साहित्यकारों से पर्याप्त भिन्न है । उन्होंने प्रख्यात
कथाओं पर आधृत उपन्यास लिखे हैं, किंतु वे सर्वथा मौलिक हैं । वे आधुनिक
हैं, किंतु पश्चिम का अनुकरण नहीं करते। भारतीयता की जडों तक पहुँचते हैं,
किंतु पुरातनपंथी नहीं हैं ।
1960 ई० में
नरेन्द्र कोहली की कहानियाँ प्रकाशित होनी आरंभ हुई थीं । 1965 ई० के आसपास
वे व्यंग्य लिखने लगे थे । हिंदी का व्यंग्य साहित्य इस बात का साक्षी है
कि अपनी पीढ़ी में उनकी-सी मौलिकता, प्रयोगशीलता, विविधता तथा प्रखरता और
कहीं नहीं है ।
नरेन्द्र कोहली ने राम-कथा से
सामग्री लेकर चार खंडों में एक बृहदाकार उपन्यास लिखा 'अभ्युदय' । किसी भी
भाषा में संपूर्ण राम-कथा पर लिखा गया यह प्रथम उपन्यास है ।
'अभिज्ञान'
कृष्ण-कथा से संबंधित है । कथा राजनीतिक है । निर्धन और अकिंचन सुदामा को
सामर्थ्यवान श्रीकृष्ण सार्वजनिक रूप से अपना मित्र स्वीकार करते हैं, तो
सामाजिक, व्यवसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सुदामा की साख तत्काल बढ़
जाती है ।
नरेन्द्र कोहली ने महाभारत-कथा की
सामग्री से अपने उपन्यास 'महासमर' की रचना की । उन्होंने जैसे महाभारत को
अपने युग में पूर्णतः जीवंत कर दिया । उन्होंने अपने इस उपन्यास में जीवन
को उसकी विराटता के साथ अत्यंत मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया है ।
पिछले
दस वर्षों में लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित करने वाली रचना 'तोड़ो,
कारा तोड़ो' नरेन्द्र कोहली की नवीनतम उपन्यास-श्रृंखला है, जिसका संबंध
स्वामी विवेकानंद की जीवन-कथा से है । स्वामी विवेकानंद का जीवन निकट अतीत
की घटना है । उनके जीवन की प्राय: घटनाएं सप्रमाण इतिहासांकित है । यहां
उपन्यासकार के लिए अपनी कल्पना अथवा अपने चिंतन को आरोपित करने की सुविधा
नहीं है । उपन्यासकार को वही कहना होगा, जो स्वामी जी ने कहा था । अपने
नायक के व्यक्तित्व और चिंतन से तादात्म्य ही उसके लिए एकमात्र मार्ग है ।