Bhairppa
डॉ. एस.एल. भैरप्पा
(जन्म: 1934)
पेशे
से प्राध्यापक होते हुए भी, प्रवृत्ति से साहित्यकार बने रहने वाले
भैरप्पा ऐसी गरीबी से उभरकर आए हैं जिसकी कल्पना तक कर पाना कठिन है। आपका
जीवन सचमुच ही संघर्ष का जीवन रहा। हुब्बल्लि के काडसिद्धेश्वर कालेज में
अध्यापक की हैसियत से कैरियर शुरू करके आपने आगे चलकर गुजरात के सरदार
पटेल विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के एन.सी.ई.आर.टी. तथा मैसूर के प्रादेशिक
शिक्षा कालेज में सेवा की है। अवकाश ग्रहण करने के बाद आप मैसूर में रहते
हैं।
‘धर्मश्री’
(1960) से लेकर ‘मंद्र’ (2002) तक आपके द्वारा रचे गए उपन्यासों की संख्या
19 है। उपन्यास से उपन्यास तक रचनारत रहने वाले भैरप्पा ने भारतीय
उपन्यासकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है।
केंद्रीय
साहित्य अकादेमी तथा कर्नाटक साहित्य अकादेमी (3 बार) का पुरस्कार, भारतीय
भाषा परिषद का पुरस्कार--ऐसे कई पुरस्कारों से आप सम्मानित हुए हैं। अखिल
भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता का, मराठी साहित्य सम्मेलन के
उद्घाटन करने का, अमेरिका में आयोजित कन्नड़ साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता
करने आदि का गौरव भी आपने अर्जित किया है।
देश-विदेश की विस्तृत यात्रा करने वाले भैरप्पा
ने साहित्येतर चिंतनपरक कृतियों की भी रचना की है। आपकी साहित्यिक साधना
से संबंधित कई आलोचनात्मक पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।